एक जादूगर था। वह बहुत दुष्ट था। बिल्कुल राक्षस ही समझो। दूसरों को तंग करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। उसने एक ऐसा जादुई आईना तैयार किया, जिसमें हर अच्छी और सुन्दर चीज भद्दी और बदसूरत दिखाई देती थी। आमतौर से तो उसमें अच्छी चीजें दिखाई ही नहीं देती थीं। खराब और बदसूरत चीज़ें उसमें खूब अच्छी मालूम पड़ती थीं।
इस जादुई आइने में अगर कोई सुन्दर आदमी देखता तो उसकी शक्ल बिल्कुल बिगड़ जाती थी। कभी सिर गायब, तो कभी पेट गायब। हाथ पैर इस तरह मुड़े हुए और टूटे हुए-से लगते थे कि कोई उसको पहचान नहीं सकता था। जादूगर यह देखकर दुष्टतापूर्वक हंसता था और मन ही मन बड़ा खुश होता था।
जादूगर ने अपने बहुत-से चेले पाल रखे थे। वे भी एक से एक बढ़कर दुष्ट थे। वे उस जादुई आईने को लेकर घूमते थे और लोगों को उनकी बदली हुई शक्लें दिखाकर चिढ़ाया करते थे।
एक बार उसके शिष्यों को एक नयी चाल सूझी। उन्होंने सोचा कि देवतागण और स्वर्ग की अप्सराएं वगैरह अपने को बहुत सुन्दर मानती हैं। चलो उन्हें भी उनकी असली शक्ल इस आइने में दिखाई जाए। यह सोचकर वे जादू के बल से आईना उठाकर आसमान में उड़ने लगे।
वे उड़ते चले गए। यहां तक कि इतनी ऊंचाई पर जा पहुँचे कि उनके हाथ से वह जादुई आईना छूट गया और ज़मीन पर जा गिरा। गिरते ही उसके इतने छोटे-छोटे टुकड़े हो गए कि वे हवा में उड़ने लगे। संसार के लिए यह और भी बुरी बात हुई। उस शैतान आईने के टुकड़े कुछ लोगों की आँखों में पड़े और वे हर अच्छी चीज को बुरी समझने लगे। उस शैतान आईने के टुकड़े कुछ लोगों के दिल में भी जा बैठे।।
यह और भी बुरा हुआ। लोगों के दिलों से दया, ममता प्रेम, स्नेह सब कुछ उड़ गया और वे पत्थर दिल हो गए, बिलकुल बर्फ़ जैसे ठंडे और कड़े। उस शीशे के कुछ बड़े टुकड़े इकट्ठा करके लोगों ने इनके चश्मे बना लिए और उन्हें अपनी आंखों पर लगाकर वे अपने पड़ोसियों और मिलने-जुलने वालों, सबको बुरा समझने लगे।
जादूगर यह देखकर खूब प्रसन्न हुआ और खिल-खिलाकर हंसता रहा।